अरब वालों का भारत पर आक्रमण
- AMAN Chauhan
- Oct 14, 2021
- 3 min read
ऐतिहासिक काल के कारण भारत और अरब के बीच व्यापार होता रहा है। गुप्त काल के दौरान, भारतीय व्यापारी अरब के रास्ते रोम के साथ बारी-बारी से जाते थे। लेकिन, गुप्त-गुप्त काल के बिंदु तक, रोम के साथ भारतीय व्यापारियों की ये व्यापारिक गतिविधियाँ कम हो गईं। विनिमय के लिए आए अरब निवेशकों ने भी मालाबार के तट पर अपनी बस्तियाँ स्थापित कर ली थीं। इन युद्धों का भारत के इतिहास ( Bharat Ka Itihas )पर अधिक प्रभाव पड़ा।
इस्लाम की आस्था सातवीं शताब्दी के अंदर अरब में उभरी और 632 ई. में इस्लाम के संस्थापक पिता मोहम्मद साहब के निधन के बाद, खिलाफत की नियुक्ति शुरू हुई। अरब के दौरान इस्लाम धर्म का प्रचार शानदार तीव्रता के साथ शुरू हुआ। इन खलीफाओं ने अपने प्रतिनिधियों को इस्लाम की आस्था फैलाने के लिए कुछ दूर-दराज के देशों में भेजना शुरू कर दिया। भारत आने का एक प्रमुख कारण धर्म का विज्ञापन था।
जानिए Adhunik Bharat Ka Itihas गुलामी से लेकर आजादी तक की कहानी
पहला हमला --
उमर बिन अल खताब ने खलीफा का कार्यभार ग्रहण करने के बाद, 12 महीने 636 के भीतर अरब के मुस्लिम आक्रमणकारियों ने समुद्र की सहायता से मुंबई के ठाणे बंदरगाह पर एक असफल नौसेना अभियान चलाया। वर्ष 647 में अब्दुल्ला बिन उमर के नेतृत्व में मकरान के माध्यम से सिंध पर मुस्लिम आक्रमण हुआ। यह अभियान सफल रहा, उस समय उस्मान बिन अफ्फान खलीफा के पद पर आसीन हुए। 12 महीनों में 659, अल हारिस के नेतृत्व में सिंध पर एक बार फिर हमला हुआ, जो असफल रहा।
दूसरा हमला --
712 ई. में मुहम्मद बिन कासिम के नेतृत्व में सिंध पर एक सफल अरब आक्रमण हुआ। 710 ईस्वी में, मोहम्मद बिन कासिम ईरान के गवर्नर अल्ला हज्जाज के आदेश पर 15,000 पैदल सेना और कुछ घुड़सवार सेना और ऊंट सेना के साथ ईरान के शिराज शहर से रवाना हुए। लगभग 711 ई. के आसपास मकरान को अपने दस्ते के साथ पार करके सिंध की सीमा पर पहुंचा। उस समय सिंध के शासक दाहिर सेन बने। मुहम्मद बिन कासिम ने सिंध के देवल (दाइबुल/देबल) में अपना पहला अभियान चलाया। मुहम्मद बिन कासिम ने पानी की दिशा और भूमि पथ के माध्यम से, पहलुओं से देवल पर हमला किया। इस हमले में राजकुमार जैशा के नेतृत्व में सिंध सेना हार गई।
अन्य हमले:
राजा दाहिर के बेटे जयशाह ने अरब सेना को हराया और सिंध के सामंतों के साथ मिलकर ब्राह्मणाबाद और अरोर पर कब्जा कर लिया, उस समय उमर इब्न अब्द अल-अजीज खलीफा बने, उमर ने कमांडर हबीब के नेतृत्व में एक सेना भेजी। हबीब ने जैशा को हराया और अरोर और छोटे प्रांतों पर अधिकार कर लिया। तत्कालीन खलीफा उमर ने जयशाह के सामने एक स्थिति रखी कि यदि वह इस्लाम को सामान्य करता है, तो उसे स्वतंत्र रूप से ब्राह्मणाबाद पर शासन करना चाहिए। जैशा और सिंध के अन्य सामंतों ने पारंपरिक इस्लाम को संघर्ष से दूर रखने के लिए। लेकिन कुछ वर्षों के बाद, जब जयशाह को अपनी गलती का अहसास हुआ, तो उन्होंने इस्लाम छोड़ दिया। यहीं से तत्कालीन खलीफा ने अपनी सेना को सिंध भेजा। जुनैद के साथ लड़ाई में जैशा हार गया और उसे बंदी बना लिया गया और बाद में मार दिया गया।
सिंध में अपनी उपलब्धि के बाद, अरब आक्रमणकारियों ने अब मेवाड़, मालवा और अन्य प्रांतों को भी जब्त करना चाहा। लगभग 12 महीने 730 के आसपास, जुनैद अपने सेनापतियों के साथ मेवाड़, गुजरात, सौराष्ट्र और मालवा की ओर बढ़ा। लेकिन गुर्जर प्रतिहार शासक नागभट्ट, चित्तौड़ शासक बप्पारावल और चालुक्य शासक ने उन्हें वहां से खदेड़ दिया। नागभट्ट और बप्पारावल की सेनाओं ने राजस्थान-सिंध सीमा पर एक प्रमुख युद्ध में जुनैद की सेना को हराया। जुनैद लड़ाई के अंदर लड़ते हुए मारा गया। इस प्रकार, वर्ष 871 तक पूरा सिंध अरबों के नियंत्रण से मुक्त हो गया।
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