भक्ति आंदोलन
- AMAN Chauhan
- Sep 24, 2021
- 3 min read
Updated: Sep 25, 2021
भक्तिआंदोलन सूफी आंदोलन से अधिक प्राचीन है। उपनिषदों में इसके दार्शनिक विचार को पूर्ण रूप से प्रतिपादित किया गया है। भक्ति आंदोलन हिंदुओं का सुधारवादी आंदोलन बन गया। इसमें ईश्वर की अनंत भक्ति, ईश्वर की एकता, भाईचारा, सभी धर्मों की समानता और जाति और कर्मकांड की निंदा की गई है। वास्तव में भक्ति आंदोलन दक्षिण भारत में ७वीं से १२वीं शताब्दी तक शुरू हुआ, जिसका उद्देश्य नयनार और अलवर संतों के बीच मतभेदों को समाप्त करना था। शंकराचार्य इस आंदोलन के प्रमुख प्रचारक माने जाते हैं। भक्ति आंदोलन के बताई गयी शिक्षा आज भी आधुनिक भारत ( Adhunik Bharat Ka Itihas )में प्रचलित है।

भक्ति आंदोलन का अर्थ:
यह आमतौर पर विशिष्ट है कि मध्यकालीन लंबाई के किसी बिंदु पर धार्मिक सुधार की अधिकतम विशेष विशेषता वह गति बन गई जिसने ईश्वर के प्रति एकतरफा, अत्यधिक भक्ति पर जोर दिया। यह स्वयं को ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण बन गया।
जिस आंदोलन ने विशेष रूप से उन विचारों पर जोर दिया, वह भक्ति आंदोलन- ईश्वर भक्ति में बदल गया। भगवान की भक्ति प्रतिदिन मोक्ष के रूप में थी।
भक्ति आंदोलन की विशेषताएं
भक्ति पद्धति का विचार एक ईश्वर के प्रति सच्ची निष्ठा है।
भक्ति पंथ ने पूजा के तरीकों के रूप में अनुष्ठानों और बलिदानों को त्याग दिया।
भक्ति आंदोलन एक समतावादी आंदोलन बन गया जिसने जाति या आस्था के आधार पर भेदभाव को पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दिया।
भक्ति संतों ने आम लोगों की सामान्य भाषा (स्थानीय भाषा) में उपदेश दिया, जिससे हिंदी, मराठी, बंगाली और गुजराती भाषाओं का विकास हुआ।
भक्ति आंदोलन के मूल सिद्धांत सूफी संतों के पाठों के समान हैं।
मध्यकालीन भक्ति आंदोलन के उद्देश्य निम्नलिखित थे:
1. जाति युक्ति की जटिलता
मध्ययुगीन भारत में जाति गैजेट की प्रकृति बहुत जटिल हो गई थी। ऊँची जातियाँ अपने आप को श्रेष्ठ मानती थीं और नीची जातियों पर घोर अत्याचार होते थे, जिसके कारण उनमें काफी असंतोष था। ऐसी किसी भी स्थिति में भक्ति की दिशा ने हम सभी के लिए रास्ता खोल दिया। इस आंदोलन के संचालक अत्यधिक और कभी-कभार होने वाली सनसनी के पूरी तरह खिलाफ रहे हैं।
2. मुस्लिम अत्याचार
इस समय, मुस्लिम शासकों की सहायता से हिंदुओं पर बार-बार अत्याचार किया जाता था। उन अत्याचारों को दूर करने के लिए, हिंदू लोग एक सुरक्षित स्थान खोजने की कोशिश करने लगे, जिसे भगवान की भक्ति के माध्यम से सबसे प्रभावी देखा जा सके। एक छात्र के अनुसार, "जब मुसलमानों ने हिंदुओं पर अत्याचार करना शुरू किया, तो निराशा में हिंदू उस विनम्र रक्षक से प्रार्थना करने लगे।"
3. इस्लाम का प्रभाव
भक्ति आंदोलन के ऊपर की ओर जोर देने का कारण इस्लाम पर प्रभाव है। लेकिन डॉ. भंडारकर ने इसका खंडन किया और लिखा कि "भक्ति गति मुख्य रूप से श्री मदभगवत गीता की शिक्षाओं पर आधारित है।"
4 । मंदिरों और मूर्तियों का विनाश
मध्ययुगीन काल में, मुस्लिम आक्रमणकारी मंदिरों में तोड़फोड़ करते थे और मंदिर लूट के लिए मूर्तियों को नुकसान पहुँचाते थे। ऐसे में हिंदू मंदिर में स्वतंत्र रूप से पूजा या मूर्ति पूजा नहीं कर सकते थे। इसलिए वे भक्ति और उपासना के माध्यम से मोक्ष प्राप्त करने की तलाश करने लगे।
5 । ब्राह्मणवाद की जटिलता
उस समय हिंदू धर्म का चरित्र बहुत जटिल हो गया था। याज्ञिक अनुष्ठान, पूजा, उपवास आदि जैसी आध्यात्मिक गतिविधियों की जटिलता को आसानी से प्रबंधित नहीं कर सकते थे। तो नीची जाति के इंसानों ने इस्लाम कबूल करना शुरू कर दिया
जाने : Prachin Bharat Ka itihas
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