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मुग़ल साम्राज्य

  • Writer: AMAN Chauhan
    AMAN Chauhan
  • Oct 9, 2021
  • 3 min read

21 अप्रैल, 1526 को पानीपत के मैदान के अंदर इब्राहिम लोदी और चुगताई तुर्क जलालुद्दीन बाबर के बीच एक युद्ध लड़ा गया, जिसमें लोदी वंश के अंतिम शासक इब्राहिम लोदी, खानाबदोश [1] बाबर के माध्यम से पराजित हो गए, जो दिल्ली पर हावी थे। 3 शताब्दियों के लिए तुर्क अफगान-सुल्तान की सल्तनत। उखाड़ फेंका और मुगल साम्राज्य और मुगल सल्तनत की नींव रखी। गुप्त वंश के बाद, मुगल साम्राज्य प्राथमिक भारत में सबसे सरल साम्राज्य बन गया जिसका एकाधिकार था।


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बाबर - (1526-1530 ई.)


बाबर का जन्म 1483 ई. में फरगना की छोटी रियासत में हुआ था। बाबर अपने पिता की मृत्यु के बाद 11 वर्ष की आयु में फरगना का शासक बना। बाबर को भारत आने का निमंत्रण पंजाब के सूबेदार दौलत खान लोदी और इब्राहिम लोदी के चाचा आलम खान लोदी के माध्यम से भेजा जाता है।


पानीपत की पहली लड़ाई भारत पर बाबर का 5 वां आक्रमण था, जिसमें उसने इब्राहिम लोदी को हराया और मुगल साम्राज्य की स्थापना की। उनकी जीत का सबसे महत्वपूर्ण उद्देश्य उनके तोपखाने और कुशल नौसेना चित्रण में बदल गया। भारत में सबसे पहले तोप का प्रयोग करने वाला बाबर था। पानीपत के इस प्राथमिक संघर्ष में बाबर ने उजबेकों की 'युद्ध की तुल्गामा तकनीक' और तोपों को सजाने के लिए 'उस्मानी तकनीक' का इस्तेमाल किया, जिसे 'रूमी तकनीक' भी कहा जाता है। पानीपत के संघर्ष में जीत की खुशी में बाबर ने काबुल के प्रत्येक निवासी को एक चांदी का सिक्का दान में दिया। अपनी उदारता के कारण बाबर को 'कलंदर' भी कहा जाने लगा।


दिल्ली सल्तनत के पतन के बाद, बाबर ने अपने शासकों (दिल्ली शासकों) को 'सुल्तान' कहने की संस्कृति को तोड़ दिया और खुद को 'बादशाह' कहने लगा।



पानीपत के संघर्ष के बाद, बाबर का राणा सांगा के खिलाफ दूसरा महत्वपूर्ण संघर्ष 17 मार्च, 1527 को आगरा से 40 किमी दूर खानवा नामक स्थान पर हुआ। अपनी जीत के बाद बाबर ने गाजी का नाम ग्रहण किया। इस युद्ध के लिए अपने सैनिकों का मनोबल बढ़ाने के लिए बाबर ने 'जिहाद' का नारा दिया[2]। वहीं मुसलमानों पर लगने वाला कर 'तमगा' छोड़ने का ऐलान हुआ, यह औद्योगिक कर का एक रूप बन गया। राजपूतों के प्रति इस 'खानवा के युद्ध' का महत्वपूर्ण उद्देश्य बाबर की भारत में रहने की इच्छा शक्ति बन गया।


29 जनवरी, 1528 को बाबर ने चंदेरी के शासक मेदिनी राय पर हमला किया और उसे हरा दिया। यह विजय मालवा पर विजय प्राप्त करने में बाबर के लिए उपयोगी सिद्ध हुई। इसके बाद बाबर ने 06 मई, 1529 को 'घाघरा की लड़ाई' लड़ी। जिसमें बाबर ने बंगाल और बिहार की संयुक्त अफगान नौसेना को हराया।


बाबर ने अपनी आत्मकथा 'बाबरनामा' का निर्माण किया, जिसे तुर्की में 'तुजुके बाबरी' कहा जाता है। जिसे बाबर ने अपनी मातृभाषा छगताई तुर्की में लिखा था। इसमें बाबर ने तत्कालीन भारतीय परिस्थिति की जानकारी दी है। अब्दुर्रहीम खानखाना के माध्यम से फारसी अनुवाद और श्रीमती का उपयोग करके अंग्रेजी अनुवाद।


बाबर ने अपनी आत्मकथा 'बाबरनामा' में विजयनगर के तत्कालीन शासक कृष्णदेव राय को अत्याधुनिक भारत का अद्भुत राजा बताया है। साथ ही, पांच मुस्लिम और दो हिंदू राजाओं मेवाड़ और विजयनगर का हवाला दिया गया।


बाबर ने 'रिसाल-ए-उसाज' की रचना की, जिसे 'खत-ए-बाबरी' भी कहा जाता है। बाबर को एक तुर्की कविता संग्रह 'दीवान' का संकलन भी दिया गया। बाबर ने 'मुबैयां' के नाम से जानी जाने वाली कविता की एक शैली को भी आगे बढ़ाया।


बाबर ने संभल और पानीपत में भी मस्जिदें बनवायीं। इसके अलावा, बाबर के मानक मीर बाकी ने 1528 और 1529 के बीच अयोध्या में एक बड़ी मस्जिद का निर्माण किया, जिसे बाबरी मस्जिद [3] के नाम से जाना जाता था।


बाबर ने आगरा में एक बाग का निर्माण किया, जिसे 'नूर-ए-अफगान' कहा जाने लगा, जिसे अब 'आराम-बाग' कहा जाता है। इसमें चारबाग शैली का प्रयोग किया गया है। यहीं पर 26 दिसंबर, 1530 को बाबर की मृत्यु के बाद वह दफन हो गया। लेकिन कुछ समय बाद बाबर का तख्ता काबुल में दफन हो गया, जो उसके द्वारा चुना गया क्षेत्र था।


बाबर के चार बेटे थे हिंडल, कामरान, अस्करी और हुमायूँ। जिसमें हुमायूँ सबसे बड़ा था, फलस्वरूप बाबर की मृत्यु के बाद उसका सबसे बड़ा पुत्र हुमायूँ निम्नलिखित मुगल शासक बन गया है।


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